सर्दियों में बच्चों को घेर रहा निमोनिया, भूलकर भी न करें ये बड़ी गलतियां

निमोनिया सर्दियों में बच्चों में तेजी से बढ़ने वाली बीमारी है। तेज बुखार, खांसी, सांस में तकलीफ और कमजोरी इसके आम लक्षण हैं। चलिए जानते हैं बच्चों को निमोनिया होने पर क्या खिलाएं, क्या न दें और इलाज के दौरान किन जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए।

निमोनिया से बचाएं नन्ही जान
बच्चों को निमोनिया से कैसे बचाएं
locationभारत
userअसमीना
calendar18 Nov 2025 04:11 PM
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बच्चों में सर्दियां शुरू होते ही सर्दी-जुकाम, खांसी और बुखार की परेशानी बढ़ने लगती है। इसी दौरान एक बीमारी तेजी से फैलती है जिसका नाम है निमोनिया। निमोनिया फेफड़ों को प्रभावित करने वाला गंभीर संक्रमण है जो बच्चों की इम्यूनिटी कम होने की वजह से उन्हें जल्दी अपनी चपेट में ले लेता है। ठंडी हवा, गंदगी, प्रदूषण और तेजी से फैलते वायरस-बैक्टीरिया मिलकर निमोनिया का खतरा और बढ़ा देते हैं। इसलिए सर्दियों के मौसम में बच्चों की सेहत पर खास ध्यान देना बेहद जरूरी हो जाता है।

इन लक्षणों को न करें इग्नोर

जब बच्चे को तेज बुखार, खांसी, छाती में दर्द, तेज सांस चलना, सुस्ती या भूख की कमी जैसे लक्षण दिखें तो इसे हल्के में बिल्कुल न लें। कई बार होंठ या चेहरा हल्का नीला पड़ना भी ऑक्सीजन की कमी का संकेत होता है। ऐसे में तुरंत डॉक्टर से सलाह लेना बहुत जरूरी है क्योंकि देरी करना स्थिति को गंभीर बना सकता है।

निमोनिया में बच्चों की देखभाल कैसे करें?

  • निमोनिया से जूझ रहे बच्चे को सबसे पहले आराम और गर्माहट चाहिए। कोशिश करें कि कमरा साफ और हल्का गर्म रहे ताकि बच्चा आराम से सांस ले सके।
  • बच्चे को गर्म और आरामदायक कपड़े पहनाएं
  • उसे ठंडी हवा से बचाएं
  • दवाइयां समय पर दें और पूरा कोर्स करवाएं
  • बच्चे को बिल्कुल हल्का, आसानी से पचने वाला और पौष्टिक खाना दें
  • प्यार और देखभाल इस समय बच्चे की सबसे बड़ी जरूरत होती है इसलिए उसे शांत माहौल दें और ज्यादा थकान वाले काम न करवाएं।

बच्चे को क्या खिलाएं?

निमोनिया के दौरान बच्चा ज्यादातर कमजोर महसूस करता है इसलिए ऐसा खाना दें जो पचने में आसान हो और शरीर को ताकत दे। जैसे-गुनगुना सूप, दाल का पानी, मूंग की खिचड़ी, हल्का दलिया, मां का दूध या गुनगुना दूध, फलों में पपीता, संतरा, सेब और केला देना फायदेमंद रहता है क्योंकि इनमें विटामिन C होता है जो इम्यूनिटी बढ़ाता है। साथ ही, बच्चे को गुनगुना पानी बार-बार पिलाते रहें ताकि डिहाइड्रेशन न हो।

निमोनिया में बच्चों को ये चीजें देने से बचें

कुछ चीजें इस दौरान बच्चे की हालत खराब कर सकती हैं इसलिए इनसे दूर रखें जैसे-आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक, बहुत ठंडी चीजें, तला-भुना और भारी खाना, जंक फूड आदि। ये चीजें संक्रमण को बढ़ा सकती हैं और ठीक होने की प्रक्रिया को धीमा कर देती हैं।

ये बातें भी बेहद जरूरी

  • बच्चे को भीड़भाड़ और प्रदूषण वाली जगहों से दूर रखें
  • नाक में कफ जमा हो तो हल्के हाथों से साफ करते रहें
  • बच्चे को पूरी नींद और आराम दें
  • घर में धूम्रपान बिल्कुल न करें
  • लक्षण बढ़ें, सांस तेज चले या बुखार उतर न रहा हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें


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इन स्मार्ट तरीकों से करें बच्चों के फेफड़ों की सुरक्षा

एयर प्यूरीफायर घर की हवा से धूल, स्मॉग और हानिकारक कणों को हटाकर माहौल को साफ करता है, जिससे बच्चे को थोड़ी राहत मिलती है। हालांकि, इसे सही दूरी पर और डॉक्टर की सलाह के साथ ही इस्तेमाल करना चाहिए।

धूल और स्मॉग से सुरक्षित नवजात
एयर प्यूरीफायर से नवजात की सांस को कैसे रखें सुरक्षित
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userअसमीना
calendar18 Nov 2025 03:39 PM
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पिछले कुछ सालों से देश के कई हिस्सों में हवा इतनी खराब हो चुकी है कि लोगों का बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। खासकर दिल्ली-एनसीआर में पॉल्यूशन का हाल ऐसा है कि धुंध, धुआं और जहरीले कणों के बीच सांस लेना भी भारी पड़ रहा है। इस खराब हवा का सबसे ज्यादा असर नवजात बच्चों पर दिख रहा है क्योंकि उनका शरीर इतना छोटा होता है और इम्यून सिस्टम अभी पूरी तरह तैयार भी नहीं होता। ऐसी स्थिति में कई परिवार घर के अंदर की हवा को साफ रखने के लिए एयर प्यूरीफायर का सहारा लेने लगे हैं। एयर प्यूरीफायर हवा से धूल, स्मॉग और हानिकारक पार्टिकल्स को फिल्टर कर देता है जिससे घर की हवा थोड़ी साफ महसूस होती है। लेकिन असली सवाल यह है क्या नवजात बच्चे को एयर प्यूरीफायर वाले कमरे में रखना सुरक्षित है?

नवजात बच्चे पर प्रदूषण का असर क्यों ज्यादा होता है?

नवजात बच्चों की सांस लेने की गति बड़ों के मुकाबले ज्यादा होती है इसलिए हवा में मौजूद जहरीले कण उनके शरीर में जल्दी पहुंच जाते हैं। इससे उन्हें खांसी, जुकाम, आंखों में जलन, सांस फूलना जैसी परेशानियां हो सकती हैं। लंबे समय तक ऐसी हवा में रहने से फेफड़ों का विकास भी प्रभावित हो सकता है और आगे चलकर अस्थमा या ब्रोंकाइटिस जैसी दिक्कतें बढ़ सकती हैं।

क्या एयर प्यूरीफायर नवजात के लिए सुरक्षित है?

एक्सपर्ट्स बताते हैं कि नवजात बच्चों पर एयर प्यूरीफायर का लॉन्ग-टर्म असर अभी तक किसी बड़ी स्टडी में साफ नहीं हुआ है। लेकिन इतना जरूर है कि बढ़ते प्रदूषण के बीच साफ हवा बच्चों के लिए बहुत जरूरी है और एयर प्यूरीफायर इसमें मदद करता है। एयर प्यूरीफायर कमरे की हवा से धूल, धुआं और स्मॉग जैसे कण हटाकर माहौल थोड़ा बेहतर बना देता है। ऐसे में नवजात के लिए यह फायदेमंद हो सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह बच्चे को पूरी सुरक्षा देता है। इसे हमेशा जरूरत और डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही इस्तेमाल करना बेहतर होता है।

कुछ जरूरी बातें जिनका ध्यान रखना चाहिए

अगर आप घर में एयर प्यूरीफायर चला रहे हैं तो कमरे में हल्का-सा वेंटिलेशन भी जरूरी है। इसलिए दिन में थोड़ी देर के लिए खिड़कियां खोलकर रखें ताकि बासी हवा बाहर निकल सके। प्यूरीफायर के फिल्टर को समय-समय पर साफ करना या बदलना भी बहुत जरूरी है वरना इसका असर कम हो जाता है।

घर के अंदर धूम्रपान, अगरबत्ती या कैंडल का धुआं न फैलने दें क्योंकि यह हवा को और खराब बना देता है। बच्चे के आस-पास धूल-मिट्टी और गंदगी कम से कम रखें और सबसे जरूरी बात सिर्फ प्यूरीफायर पर निर्भर न रहें। कमरा साफ रखें, पौधे लगाएं और हवा को नेचुरली बेहतर बनाने की कोशिश भी करते रहें।

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वाइट डिस्चार्ज आना नॉर्मल या बड़ी बीमारी? जान लें वरना हो सकती है देरी

महिलाओं में वाइट डिस्चार्ज होना सामान्य है लेकिन इसके रंग, गंध या मात्रा में बदलाव कई बार किसी इंफेक्शन का संकेत भी बन सकते हैं। जानें वाइट डिस्चार्ज कब नॉर्मल होता है, कब ध्यान देने की जरूरत होती है, इसके क्या कारण हैं और कौन से लक्षण खतरे का संकेत देते हैं।

ज्यादा वाइट डिस्चार्ज होने के कारण
वाइट डिस्चार्ज क्यों होता है?
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userअसमीना
calendar18 Nov 2025 01:13 PM
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महिलाओं के शरीर में होने वाले कई बदलावों को हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं कभी शर्म की वजह से, कभी जानकारी की कमी की वजह से। वाइट डिस्चार्ज भी उन्हीं में से एक है। कई बार महिलाएं इसे बीमारी समझकर डर जाती हैं और कई बार इसे इतना हल्का ले लेते हैं कि समय पर ध्यान ही नहीं दे पातीं। सच तो यह है कि वाइट डिस्चार्ज होना महिलाओं के शरीर का बिल्कुल नेचुरल हिस्सा है। हर लड़की और महिला इसे महसूस करती है कभी थोड़ा कम तो कभी ज्यादा। समस्या तब शुरू होती है जब इसके रंग, गंध या मात्रा में बदलाव आने लगते हैं और समझ नहीं आता कि ये नॉर्मल है या किसी परेशानी का संकेत। यही कन्फ्यूजन सबसे ज्यादा परेशान करता है।

अगर आप भी कभी इसके कारण असहज हुई हों, घबराई हों या मन में यह सवाल आया हो कि “क्या ये बिल्कुल ठीक है या मुझे डॉक्टर को दिखाना चाहिए?”, तो यह आर्टिकल आपके सारे डाउट्स क्लियर कर देगा।

वाइट डिस्चार्ज कब माना जाता है नॉर्मल ?

महिलाओं में वाइट डिस्चार्ज होना बिल्कुल आम बात है। असल में यह एक नेचुरल क्लीनिंग सिस्टम की तरह काम करता है जो वजाइना को हेल्दी, साफ और मॉइश्चराइज रखता है। अगर बात करें नॉर्मल डिस्चार्ज की तो इसका रंग सफेद या हल्का क्रीम होता है। इसमें कोई बदबू, खुजली या जलन नहीं होती, इसकी मात्रा बहुत ज्यादा नहीं होती। ये आमतौर पर ओव्यूलेशन के दौरान, पीरियड्स से पहले या बाद में, हॉर्मोनल बदलाव, तनाव या नींद की कमी, कमजोरी की वजहों से आता है। इस तरह का डिस्चार्ज बिल्कुल नॉर्मल है और इसे लेकर घबराने की बिल्कुल जरूरत नहीं होती।

कब बढ़ जाता है खतरा ?

अगर डिस्चार्ज में अचानक बदलाव आए तो यह किसी इंफेक्शन या बीमारी का संकेत हो सकता है। जब डिस्चार्ज का रंग पीला, हरा या भूरा हो जाए, इसमें तेज या खराब बदबू आने लगे, वजाइना में खुजली, जलन या दर्द महसूस हो, डिस्चार्ज की मात्रा बहुत ज्यादा हो जाए, सेक्स के दौरान दर्द हो तो आपको इसे हल्के में बिल्कुल नहीं लेना चाहिए और डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ये लक्षण अक्सर फंगल इंफेक्शन, बैक्टीरियल वेजिनोसिस या सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन (STI) की वजह से आते हैं। समय पर इलाज न मिलने पर इंफेक्शन यूटरस या फैलोपियन ट्यूब तक फैल सकता है जिससे आगे चलकर प्रजनन से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं।

डिस्चार्ज में बदलाव किन बीमारियों का हो सकता है संकेत ?

बैक्टीरियल वेजिनोसिस

इसमें डिस्चार्ज पतला, पानी जैसा और काफी बदबूदार हो जाता है।

ट्राइकोमोनियासिस

डिस्चार्ज का रंग पीला या हरा दिख सकता है और इसके साथ जलन भी महसूस होती है।

सर्विसाइटिस या PID

इसमें वजाइना के साथ-साथ पेट के निचले हिस्से में दर्द, बुखार, कमजोरी और सेक्स के दौरान दर्द हो सकता है। इनमें से किसी भी लक्षण के दिखने पर डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है ताकि आपको भविष्य में किसी प्रकार की गंभीर बीमारी का सामना न करना पड़े।

इन बातों का रखें खास ध्यान

  • रोजाना प्राइवेट पार्ट की सफाई का ध्यान रखें।
  • सिर्फ कॉटन अंडरवियर पहनें।
  • सिंथेटिक या बहुत टाइट अंडरवियर से बचें।
  • प्राइवेट एरिया को साफ और सूखा रखें।
  • गीले कपड़े या पैंटी लाइनर बहुत देर तक न पहनें।
  • भरपूर पानी पिएं और हेल्दी डाइट लें।
  • तनाव कम करें और नींद पूरी लें।
  • किसी भी असामान्य बदलाव पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

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