फसलों और घरों के लिए आफ़त बना दीमक, घरेलू उपाय असरदार

देश-दुनिया आज दीमक की बढ़ती समस्या से परेशान है। खेती-किसानी से लेकर घरों और दफ्तरों तक यह आक्रामक कीट भारी नुकसान पहुँचा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान और लगातार घटती वर्षा ने दीमक के प्रसार को तेज़ कर दिया है। सूखे की स्थिति दीमक के लिए सबसे अनुकूल मानी जाती है।

termites in crops
फसलों में दीमक (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar29 Nov 2025 01:18 PM
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बता दे कि वैज्ञानिक रिपोर्टों के अनुसार दीमक की वजह से दुनिया को हर साल 3.33 लाख करोड़ रुपये (करीब 4,000 करोड़ डॉलर) से अधिक का नुकसान होता है। वहीं भारत में खेतों और फसलों में दीमक से होने वाला आर्थिक नुकसान हर साल कई करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है। पिछले दशक की तुलना में खेतों में दीमक का प्रकोप कई गुना बढ़ा है।

ठंडे देशों तक फैल रहा दीमक

बता दे कि जलवायु परिवर्तन के चलते दीमक अब उन शहरों तक पहुँच चुके हैं जहाँ पहले इनका नामोनिशान नहीं था। इनमें साओ पाउलो, लागोस, मियामी, जकार्ता जैसे गर्म क्षेत्रों के अलावा लंदन, पेरिस, ब्रुसेल्स, न्यूयॉर्क और टोक्यो जैसे ठंडे शहर भी शामिल हैं। विशेषज्ञों के अनुसार बढ़ती कनेक्टिविटी और शहरीकरण भविष्य में दीमक के प्रसार को और बढ़ावा देंगे।

क्यों खतरनाक है दीमक?

बता दें कि दीमक मुख्य रूप से सेल्यूलोज खाते हैं, जो लकड़ी, पौधों, कागज और घास में पाया जाता है। यही कारण है कि यह फर्नीचर, दीवारों, पेड़ों और फसलों को चट कर जाते हैं। एक मादा दीमक एक दिन में 30,000 तक अंडे दे सकती है, जिससे कुछ ही समय में उनकी संख्या लाखों में पहुँच जाती है। दीमक की कॉलोनियाँ जमीन के 10–20 मीटर नीचे तक फैली होती हैं, जहाँ किसी भी दवा का असर पहुँचाना मुश्किल होता है।

किसानों की चुनौती बढ़ी

बता दें कि किसान दीमक नियंत्रण के लिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल तो करते हैं, लेकिन यह समाधान स्थायी नहीं है। दीमक दवा को सूंघकर छिप जाते हैं और असर खत्म होते ही वापस सक्रिय हो जाते हैं।

जाने कैसे पाया जा सकता है छुटकारा?

विशेषज्ञों ने दीमक नियंत्रण के लिए कई परंपरागत और वैज्ञानिक उपाय सुझाए है जो कि नीम का तेल लकड़ी या फर्नीचर पर लगाने से दीमक धीरे-धीरे खत्म होने लगते हैं। नींबू का सिरका और नमक: घर और फर्नीचर में दीमक हटाने में कारगर। बोरेक्स पाउडर दीमक मारने के लिए प्रभावी माना जाता है। क्लोरपायरीफास दवा खेतों में जड़ों के पास डालकर सिंचाई करने से दीमक मरते हैं। मेटाराइजियम फफूंद 100 किलो गोबर खाद में मिलाकर खेत में बुरकने से रोकथाम होती है। खट्टा दही पौधों पर स्प्रे करने से दीमक दूर रहते हैं। इमिडाक्लोप्रिड घोल सबसे प्रभावी आधुनिक एंटी-रिपेलेंट दवा, जिसे दीमक पहचान नहीं पाते।

प्रकृति में दीमकों के दुश्मन

बता दें कि दीमक के सबसे बड़े प्राकृतिक दुश्मन चींटियाँ मानी जाती हैं, जो उनकी कॉलोनियों को नष्ट कर देती हैं। दुनिया का सबसे बड़ा दीमक मैक्रोटर्मेस बेलिकोसस है, जिसकी रानी लगभग 4.2 इंच लंबी होती है।

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दो दिनों में दूसरी बार दिल्ली दौरे ने बढ़ाई अटकलें

बिहार में एनडीए को मिले प्रचंड जनादेश के बाद नई सरकार के गठन को लेकर हलचल लगातार बढ़ती जा रही है। सोमवार देर रात भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से अचानक फोन आने के बाद जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह विशेष चार्टर विमान से दिल्ली रवाना हुए।

JDU-BJP meetings continue
जेडीयू नेता संजय झा और ललन सिंह (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar29 Nov 2025 01:24 PM
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बता दें कि सूत्रों के अनुसार, संजय झा और ललन सिंह की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित बीजेपी के शीर्ष नेताओं के साथ लगातार बातचीत हो रही है। यह दूसरी बार है जब दोनों नेता दो दिनों के भीतर दिल्ली पहुंचे हैं। 16 नवंबर को भी वे अमित शाह और अन्य नेताओं से मुलाकात कर पटना लौटे थे, लेकिन सोमवार देर रात अचानक बुलावे ने नई सरकार के स्वरूप को लेकर अटकलें तेज कर दी हैं।

पटना से दिल्ली तक तेज हुई राजनीतिक गतिविधियाँ

बता दें कि पटना में मुख्यमंत्री आवास पर भाजपा–जदयू नेताओं की मैराथन बैठकें जारी हैं। माना जा रहा है कि इस बार मंत्रिमंडल का गठन ‘6 विधायक = 1 मंत्री’ फार्मूले पर होगा। छोटे दलों—उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी—को भी उनके कम विधायकों के बावजूद एक-एक मंत्री पद मिलने की संभावना है। चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (आर) के 19 विधायक हैं, इसलिए उन्हें तीन मंत्री पद मिल सकते हैं। साथ ही एक डिप्टी सीएम पद की मांग भी उठ रही है।

भाजपा बनी सबसे बड़ी पार्टी

बता दें कि 89 विधायकों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है। ऐसे में उसे 15 मंत्री पद, विधानसभा अध्यक्ष और एक डिप्टी सीएम का पद मिलने की चर्चा है। वहीं जदयू के पास 85 विधायक हैं, जिसके आधार पर उसे मुख्यमंत्री सहित 14 मंत्री पद मिलने की संभावना है।

विधानसभा अध्यक्ष पद पर खींचतान

इस बार जदयू की ओर से विधानसभा अध्यक्ष पद की मांग की जा रही है। जदयू का तर्क है कि विधान परिषद में सभापति का पद पहले ही बीजेपी के पास है। लेकिन बीजेपी का दावा है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते स्पीकर का पद उसे मिलना चाहिए।

गृह मंत्रालय को लेकर रस्साकशी

भाजपा इस बार गृह मंत्री पद पर नजर बनाए हुए है, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले भी यह विभाग अपने पास रखते आए हैं। माना जा रहा है कि इस बार भी वे इसे छोड़ने के मूड में नहीं हैं।

20 नवंबर को होगा शपथ ग्रहण

गांधी मैदान में होने वाले शपथ ग्रहण समारोह की तैयारियाँ जोरों पर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्री समारोह में शामिल होंगे। सभी सहयोगी दलों के शीर्ष नेताओं को भी आमंत्रण भेजा जा चुका है।

विधानसभा भंग, 19 नवंबर को NDA बैठक

बता दें कि नीतीश कुमार ने सोमवार को अपनी सरकार की अंतिम कैबिनेट बैठक की और विधानसभा भंग करने का प्रस्ताव पारित कराया। 19 नवंबर को जदयू और बीजेपी विधायक दल की अलग-अलग बैठकें होंगी, जिसके बाद एनडीए के सभी विधायकों की बैठक में सर्वसम्मति से नेता चुना जाएगा। फिर मुख्यमंत्री राजभवन जाकर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। बिहार की नई सरकार के गठन की प्रक्रिया अंतिम चरण में पहुँच चुकी है, लेकिन मंत्रिमंडल के स्वरूप, विधानसभा अध्यक्ष और डिप्टी सीएम पद को लेकर अभी भी माथापच्ची जारी है।

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बिहार की राजनीति में ओबीसी और अति पिछड़ी जातियों ने दिखाया वर्चस्व

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह से पलट कर रख दिया है। इस बार के चुनाव परिणामों ने जातीय आधार पर राजनीति का नया परिदृश्य सामने लाया है, जिसमें सवर्ण, ओबीसी, दलित और मुस्लिम समुदायों के विधायकों की संख्या में उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिला है।

Bihar Assembly Elections 20250
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar18 Nov 2025 04:24 PM
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बता दे कि इस बार के चुनाव में सवर्ण जातियों से जीतकर आए विधायकों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। 2020 में जहां 64 सवर्ण विधायक जीतकर आए थे, वहीं इस बार यह आंकड़ा बढ़कर 72 हो गया है। इसमें राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ जैसे समुदाय प्रमुख हैं। भाजपा और जेडीयू जैसी प्रमुख पार्टियों ने भी सवर्ण वोट बैंक को सहेजने में सफलता हासिल की है।

ओबीसी एवं अतिपिछड़ी जातियों का वर्चस्व

बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में से लगभग आधी, यानी 120 सीटों पर पिछड़ी जातियों और अतिपिछड़ी जातियों का वर्चस्व रहा है। ओबीसी और ईबीसी से 83 और 37 विधायक जीतकर आए हैं। कुशवाहा, कुर्मी, यादव और वैश्य जैसे समुदायों का प्रतिनिधित्व भी इस चुनाव में बढ़ा है। खास बात यह है कि कुशवाहा जाति से 7 विधायक, वैश्य से 11, कुर्मी से 2 और यादव से 4 विधायक चुने गए हैं। 

मुस्लिम विधायकों की संख्या में गिरावट

मुस्लिम समुदाय के विधायकों की संख्या इस बार अब तक के सबसे कम 11 पर आ पहुंची है। 2020 में 19 मुस्लिम विधायक चुने गए थे। इस बार AIMIM से 5, आरजेडी से 3, कांग्रेस से 2 और जेडीयू से 1 मुस्लिम विधायक जीतकर आए हैं। यह संख्या बिहार के मुस्लिम मतदाताओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में गिरावट को दर्शाती है।

दलित और अनुसूचित जाति का स्थिर आंकड़ा

दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व इस बार भी कायम रहा है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर 40 विधायक चुने गए हैं, जिनमें बीजेपी से 12 और जेडीयू से 14 विधायक हैं। पासवान और रविदास जैसे समुदायों के भी प्रतिनिधि इस बार विजेता रहे हैं।

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